बंगाल में विधवाओं की हालत देश में सबसे बदतर है.

राष्ट्रीय महिला आयोग ने कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट में पेश अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि सीपीएम की अगुवाई वाली सरकार के शासनकाल के दौरान बंगाल में विधवाओं की हालत देश में सबसे बदतर है. उसी दौर में राज्य की विधवाओं के बनारस और वृंदावन जाने का सिलसिला तेज हुआ.


नाटिंघम विश्वविद्यालय के स्कूल आफ इकोनामिक्स के इंद्रनील दासगुप्ता के साथ विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 की नाकामी पर शोध करने वाले कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यिकी संस्थान के दिगंत मुखर्जी कहते हैं, "ईश्वर चंद्र विद्यासागर की अगुवाई में चले सामाजिक आंदोलन के दबाव में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उक्त अधिनियम को पारित जरूर कर दिया था. लेकिन आगे चल कर समाज में इसका खास असर देखने को नहीं मिला. विधवाओं को समाज में अछूत ही माना जाता रहा."


वह कहते हैं कि एकल परिवारो के मौजूदा दौर में विधवाओं की हालत औऱ बदतर हुई है. यही वजह है कि बनारस औऱ वृंदावन के विधवाश्रमों में बंगाल की विधवाओं की तादाद साल-दर-साल बढ़ती जा रही है.


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