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Showing posts from July 6, 2025

ताज़िया और मातम – क्या इस्लाम का हिस्सा हैं या एक सांस्कृतिक परंपरा?

/ ताज़िया और मातम – क्या इस्लाम का हिस्सा हैं या एक सांस्कृतिक परंपरा? ✍️ Awaam Tak विश्लेषण | 9 मुहर्रम 1447 हिजरी | रिपोर्ट: इरफान अली --- 🔷 भूमिका: हर साल मुहर्रम का महीना आते ही देशभर में ताजिए बनते हैं, जुलूस निकलते हैं, ढोल-नगाड़े बजते हैं, और लोग खुद को ज़ंजीरों से मारते हैं — इसे इबादत या शहादत की मोहब्बत कहा जाता है। लेकिन सवाल ये है: क्या ये सब इस्लाम का हिस्सा है? क्या नबी ﷺ, सहाबा या खुद हज़रत हुसैन (र.अ.) ने कभी ऐसा कुछ किया या करवाया? --- 🟩 1. ताजिया – मज़हब या परंपरा? ताजिया बनाने और निकालने की कोई मिसाल कुरआन या हदीस में नहीं मिलती। यह परंपरा भारत, ईरान और इंडो-मुस्लिम संस्कृति में उभरी, अरब में नहीं। माना जाता है कि मुगल दौर में अकबर ने इसे शुरू किया था — न कि किसी खलीफा या इस्लामी स्कॉलर ने। 📖 कुरआन कहता है: "आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया..." – (सूरह माएदा 5:3) --- 🟥 2. मातम और ज़ंजीर – क्या इस्लाम इजाज़त देता है? इस्लाम में किसी के इंतकाल पर मातम, खुद को चोट पहुँचाना, चिल्लाना — हराम (निषिद्ध) है। 📖 सहीह हदीस: ...