भारत के महान कवियों में से एक कवि थे l कवि:- केदारनाथ अग्रवाल जिन्होंने अपने जीवन में काफी कविता लिखी जिनमे एक कविता हवा मैं , बसंती हवा हूं। सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूं बड़ी बावली हूं , बड़ी मस्त मौली नहीं कुछ फिकर हैं, बड़ी ही निडर हूं जिधर चाहती हूं , उधर घूमती हू मुसाफिर अजब हूं । न घर बार मेरा, ना उद्देश्य मेरा न इच्छा किसी की, न आशा किसी की न प्रेमी न दुश्मन, जिधर चाहती हूं, उधर घूमती हूं हवा हूं हवा मैं, बसंती हवा हूं जहां से चली मैं,जहां को गई मैं, शहर,राम,गांव,बस्ती,नदी,रेट निर्जन हरे खेत,पोखर, झूलती चली मैं, झूमती चली मैं हवा हूं हवा मैं, बसंती हवा हूं I चढ़ी पेड़ महुआ, थपथप मचाया, गिरी काम से फिर, चडी आम ऊपर उसे भी साकड़ा, किया कान में को उतरकर भागी में, हरे खेत पहुंची वहां गेहूं में, लहर खूब मारी पहड़ दो पहर क्या, अनेकों पहर तक, इसी में रही मै। देख खरी अलसी, लिए सिस कलसी, मुझे खूब सुजी, हिलाया मिला गिर पर न कलसी । इसी हार को प, हलाई न सरसों, जुलाई ना सरसो।ं हवा हूं हवा म, बसंती हवा हूं मुझे देखते ही, हरहरी लजा