चिड़ियाघर के बाड़े में कूदे युवक को शेर ने नहीं बनाया निवाला

शेर के बाड़े में कूदने की घटना चिड़ियाघर के कर्मचारियों में चर्चा का विषय बन गई है। हर किसी का कहना है कि रेहान की किस्मत अच्छी थी कि वह मौत के मुंह से बच निकला।


बचाव दल के एक कर्मचारी ने बताया कि 17 नंबर बाड़े में हर रोज शेर सुंदरम के लिए भोजन रखा जाता है। शाम करीब 4 से 5 बजे के आसपास उसे खाना दिया जाता है और कुछ भोजन सुबह के लिए उसके बाड़े में रख दिया जाता है। सुबह करीब 9 से 10 बजे के बीच शेर के टहलने के लिए बाड़े में मौजूद उसके पिंजरे को खोला जाता है। सुबह का खाना इसलिए रख देते हैं ताकि शेर को भूख लगे तो मांसाहारी भोजन उसे समय पर मिल सके। 


कर्मचारियों का कहना था कि बृहस्पतिवार को शेर सुंदरम ने सुबह का भोजन कर लिया था। उसका पेट भरा हुआ था और वह बाड़े में टहल रहा था। कर्मचारियों की मानें तो शेर को जब भूख नहीं होती है तो वह अपना शिकार ऐसे ही छोड़ देता है जैसा कि उसने रेहान के साथ किया। शेर भूखा होता तो इतने करीब होने के बाद शिकार के सही सलामत बचने की कोई गुंजाइश नहीं होती है।


चिड़ियाघर में शेर के बाड़े में घुसे रेहान को पता चला कि सुरक्षाकर्मी उसे बचाने आ रहे है तो उसने कहा कि मुझे मत बचाना मैं मरने आया हूं। बचाव दल ने उसे बाड़े से बाहर निकलने के लिए सीढ़ी भी दी, लेकिन वह किसी बात को मानने के लिए तैयार नहीं था। इसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने शेर का ध्यान भटकाकर बाड़े के दूसरे हिस्से में किया और फिर जाकर उसकी जान बचाई जा सकी।


क्विक रिस्पांस टीम (क्यूआरटी) के ही एक सदस्य ने बताया कि शेर को बेहोश करने के बाद जब टीम रेहान को बाहर निकालने का प्रयास कर रही थी तो वह भागकर झाड़ी और पेड़ों के पीछे छिपने की कोशिश कर रहा था। बाड़े से बाहर निकालने के लिए कर्मचारियों ने उसकी ओर रस्सी भी फेंकी, लेकिन उसने रस्सी को पकड़ने की जरूरत ही नहीं समझी। यह देख कर्मचारी भी चकरा गए। 

इसी बीच कुछ कर्मचारी बाड़े में कूदे और रेहान को पकड़ने लगे तो वह उनसे बचने के लिए पेड़ों के पीछे जाकर छिपने लगा। दर्शक विकास यादव ने बताया कि रेहान की हरकतों से ही उसके मानसिक स्तर का पता चल रहा था। वह जब बाड़े में कूद रहा था तो गार्ड शत्रुघ्न ने उसे रोका भी था, लेकिन वह नहीं माना।

यूं घुसा बाड़े में
पुलिस के अनुसार बाड़े की एक तरफ लोहे की ग्रिल थी वहीं, दूसरी साइड में बांस की लकड़ी का बाड़ा बनाया हुआ था। रेहान बांस की लकड़ी के बाड़े पर चढ़ गया था और फिर अंदर की ओर कूद गया। पुलिस और चिड़ियाघर प्रबंधन को बाड़े के बाहर लकड़ी की बल्ली टूटी मिली है। बताया जा रहा है कि बल्ली के टूटे होने का कारण पता लगाया जा रहा है कि आखिर इसे रेहान ने तोड़ या फिर बल्ली कमजोर थी, जो उसके भार से टूट गई।

5 साल पहले बाघ विजय ने युवक को मार डाला था
चिड़ियाघर में घुसकर शेर के बाड़े में कूद जाने की घटना ने चिड़ियाघर प्रबंधन पर कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं। सुरक्षा से जुड़ी इस तरह की लापरवाही पर फिलहाल प्रबंधन खामोश हैं। 

इससे पहले भी दिल्ली चिड़ियाघर में ऐसी घटना देखने को मिल चुकी है। शेर के बाड़े में रेहान के कूदने और वहां से बच निकलने की घटना के बाद हर किसी के जेहन में पांच साल पहले घटी घटना ताजा हो गई। सितंबर 2014 में विजय नामक सफेद बाघ एक युवक को गर्दन से खींचते हुए अपने बाड़े में ले गया था और फिर उसको मार दिया था। उस वक्त भी युवक को बचाने के लिए दर्शक चीखते रह गए। 

उन्हीं में से कुछ ने फोन पर वीडियो बनाई थी जो सोशल मीडिया पर काफी चर्चित हुई थी। वीडियो में युवक हाथ जोड़ता हुआ बाघ के सामने बैठा था। उस घटना में युवक की जान चली गई थी। बाद में पुलिस ने उसकी पहचान मकसूद के रूप में सार्वजनिक की थी। मकसूद चिडिय़ाघर घूमने आया था और बाघ को पत्थर मार रहा था।

फतेह सिंह को कर दिया घायल
कुछ ही समय पहले चिड़ियाघर कर्मचारी फतेह सिंह भी बंगाल टाइगर के हमले के शिकार हुए थे। हालांकि टाइगर के बीमार होने के कारण उनका बचाव हो गया। वह बंगाल टाइगर के बाड़े में पानी रख रहे थे। इसी बीच उसने हमला कर दिया। इस घटना में फतेह सिंह का एक हाथ लहुलूहान हो गया था।


ग्वालियर के डबरा के समूदन में 17 गायों की मृत्यु की खबर बेहद दुखद

मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले में बीस दिन तक कमरे में बंद कर भूखा-प्यासा रखे जाने से सत्रह गायों की मौत का मामला सामने आया है। बेदर्द गांव वालों ने इन गायों को ऐसे कमरे में बंद किया था जहां सूर्य का उजाला तक नहीं था। ऐसे में बीस दिन चारा-पानी नहीं मिलने से उनकी मौत हो गई। पुलिस ने मामले में 12 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।

जानकारी के अनुसार जिले के डबरा शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर समूदन गांव में कमरे में बंद रखी गईं 17 गायों की भूख-प्यास से तड़पकर मौत होने की खबर है। इन गायों को ग्रामीणों ने ही कमरे में बंद किया था। इस कमरे के पास ही दो स्कूल, पंचायत भवन, जनमित्र केंद्र और आंगनबाड़ी केंद्र भी हैं। बुधवार को कमरे से बदबू आने पर गांव की सरपंच के पति बलवीर सिंह, पंचायत सचिव प्रदीप राणा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता प्रेमाबाई को गायों की मौत की जानकारी मिली थी। आरोप है कि इन सभी ने मामले को दबाने का प्रयास किया।

इसके लिए रात में ही कमरे की दीवार जेसीबी से तोड़ी गई और आंगनबाड़ी केंद्र के बाहर ही मरी गायों को दफनाने का प्रयास किया। इसके लिए रात में ही कमरे की दीवार जेसीबी से तोड़ी गई और आंगनबाड़ी केंद्र के बाहर ही मरी गायों को दफनाने का प्रयास किया। गुरुवार को प्रदेश की मंत्री इमरती देवी, कलेक्टर अनुराग चौधरी मौके पर पहुंचे और एसडीएम को जांच करने के निर्देश देते हुए शुक्रवार को रिपोर्ट देने के लिए कहा।

मुख्यमंत्री कमलनाथ के ट्वीट पर जागा प्रशासन
घटना को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दोपहर में एक ट्वीट किया। उन्होंने लिखा- ग्वालियर के डबरा के समूदन में 17 गायों की मृत्यु की खबर बेहद दुखद है। निष्पक्ष जांच के निर्देश दिए हैं। हम गो माता की रक्षा और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत और वचनबद्ध हैं। ऐसी घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जा सकती हैं। इस ट्वीट के बाद रात में कलेक्टर-एसपी सहित अधिकारी मौके पर पहुंचे।


मोदी मिलें तो क्या कहोगी', मॉडल के जवाब ने.....................

ब्यूटी कॉन्टेस्ट में पूछा गया, 'मोदी मिलें तो क्या कहोगी', मॉडल के जवाब ने इंटरनेट तोड़ दिया


कोहिमा. नागालैंड की राजधानी है. यहां पर 5 अक्टूबर को मिस कोहिमा ब्यूटी पीजेंट 2019 का फाइनल राउंड हो रहा था. इसमें तीन विनर्स को चुना जा रहा था. उनसे सवाल किए जा रहे थे. अब इसमें एक कंटेस्टेंट थीं, उनसे जज ने सवाल किया. पूछा कि


इस पर जो उस कंटेस्टेंट ने जवाब दिया, अब वो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.


इसमें कह रही हैं कि अगर उन्हें पीएम मोदी बातचीत के लिए आमंत्रित करेंगे तो मैं उनसे कहूंगी कि वह गायों के बजाय महिलाओं पर ज़्यादा ध्यान दें. उन पर फोकस करें. इस सवाल से ये कंटेस्टेंट पहले स्थान पर तो नहीं आईं, पर इन्हें सेकेंड रनरअप का खिताब जरूर मिला. इनकी उम्र 18 साल है और ये एक स्टूडेंट हैं.


भारत के इतिहास में रजिया सुल्तान का नाम स्वर्ण अक्षरों में इसलिए लिखा जाता है क्योंकि उसे भारत की प्रथम महिला शाषक होने का गर्व प्राप्त है |

भारत के इतिहास में रजिया सुल्तान का नाम स्वर्ण अक्षरों में इसलिए लिखा जाता है क्योंकि उसे भारत की प्रथम महिला शाषक होने का गर्व प्राप्त है | दिल्ली सल्तनत  के दौर में जब बेगमो को सिर्फ महलो के अंदर आराम के लिए रखा जाता था वही रजिया सुल्तान  से महल से बाहर निकलकर शाषन की बागडोर सम्भाली थी |  रजिया सुल्तान ने अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान भी लिया था जिसकी बदौलत उसे दिल्ली सल्तनत की पहली महिला शाषक बनने का गौरव मिला था | उसने दुसरे सुल्तान की पत्नियों की तरह खुद को “सुल्ताना” कहलवाने के बजाय सुल्तान कहलवाया था क्योंकि वो खुद को किसी पुरुष से कम नही मानती थी | आइये आज आपको उसी जाबांज महिला शाषक की जीवनी से आपको रूबरू करवाते है |


रज़ीया सुल्ततान ने सबसे पहले अपने करिश्माई व्यक्तित्व का प्रदर्शन दिल्ली की प्रजा को अपने सुल्तान पद पर स्थापित होने के लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए किया. उसने दिल्ली की प्रजा से न्याय मांग पर रुकनुदीन फिरोज के विरुध विद्रोह का माहौल पैदा कर दिया. वह कूटनीति में चतुर थी अत: अपनी चतुराई का प्रदर्शन करते हुए उसने तुर्क ए चहलगानी की महत्वकांक्षा और एकाधिकार को तोड़ने का प्रयास किया.इसके अलावा विद्रोही अमीरों में आपस में फूट पैदा करवा दी और उन्हें राजधानी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और दिल्ली में सुल्तान के पद पर आसीन हुई.


रज़ीया सुल्ततान ने शासन पर 3 साल 6 महीने तथा 6 दिन राज किया. रज़िया ने पर्दा प्रथा का त्याग किया तथा पुरुषो की तरह खुले मुंह ही राजदरबार में जाती थी. रज़िया के शासन का बहुत जल्द अंत हो गया लेकिन उसने सफलता पूर्वक शासन चलाया, रज़िया में शासक के सभी गुण मौजूद थे लेकिन उसका स्त्री होना इन गुणों पर भारी था. अत: उसके शासन का पतन उसकी व्यकतिगत असफलता नहीं थी.


रज़िया सुल्तान ने शासन पर 3 साल 6 महीने तथा 6 दिन राज किया. रज़िया ने पर्दा प्रथा का त्याग किया तथा पुरुषो की तरह खुले मुंह ही राजदरबार में जाती थी. रज़िया के शासन का बहुत जल्द अंत हो गया लेकिन उसने सफलता पूर्वक शासन चलाया, रज़िया में शासक के सभी गुण मौजूद थे लेकिन उसका स्त्री होना इन गुणों पर भारी था. अत: उसके शासन का पतन उसकी व्यकतिगत असफलता नहीं थी.


रजिया सुल्तान के कार्य :


अपने शाषनकाल में  रजिया सुल्ततान अपने पुरे राज्य में कानून की व्यवस्था को उचित ढंग से करवाया | उसने व्यापार को बढ़ाने के लिए इमारतो के निर्माण करवाए , सडके बनवाई और कुवे खुदवाए | उसने अपने राज्य में शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई विद्यालयों , संस्थानों , खोज संस्थानों और राजकीय पुस्तकालयों का निर्माण करवाया | उसने सभी संस्थानों में मुस्लिम शिक्षा के साथ साथ हिन्दू शिक्षा का भी समन्वय करवाया | उसने कला और संस्कृति को बढ़ाने के लिए कवियों ,कलाकारों और संगीतकारो को भी प्रोत्साहित किया था |


सरदारों की मनमानी :


इल्तुतमिश के इस फ़ैसले से उसके दरबार के सरदार अप्रसन्न थे। वे एक स्त्री के समक्ष नतमस्तक होना अपने अंहकार के विरुद्ध समझते थे। उन लोगों ने मृतक सुल्तान की इच्छाओं का उल्लघंन करके उसके सबसे बड़े पुत्र रुकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह को, जो अपने पिता के जीवन काल में बदायूँ तथा कुछ वर्ष बाद लाहौर का शासक रह चुका था, सिंहासन पर बैठा दिया। यह चुनाव दुर्भाग्यपूर्ण था। रुकुनुद्दीन शासन के बिल्कुल अयोग्य था। वह नीच रुचि का था। वह राजकार्य की उपेक्षा करता था तथा राज्य के धन का अपव्यय करता था। 


उसकी माँ शाह तुर्ख़ान के, जो एक निम्न उदभव[1] की महत्त्वाकांक्षापूर्ण महिला थी, कार्यों से बातें बिगड़ती ही जा रही थीं। उसने सारी शक्ति को अपने अधिकार में कर लिया, जबकि उसका पुत्र रुकनुद्दीन भोग-विलास में ही डूबा रहता था। सारे राज्य में गड़बड़ी फैल गई। बदायूँ, मुल्तान, हाँसी, लाहौर, अवध एवं बंगाल में केन्द्रीय सरकार के अधिकार का तिरस्कार होने लगा। दिल्ली के सरदारों ने, जो राजमाता के अनावश्यक प्रभाव के कारण असन्तोष से उबल रहे थे, उसे बन्दी बना लिया तथा रज़िया को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया। रुकनुद्दीन फ़िरोज़ को, जिसने लोखरी में शरण ली थी, क़ारावास में डाल दिया गया। जहाँ 1266 ई. में 9 नवम्बर को उसके जीवन का अन्त हो गया।


अमीरों से संघर्ष :


अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए रज़िया को न केवल अपने सगे भाइयों, बल्कि शक्तिशाली तुर्की सरदारों का भी मुक़ाबला करना पड़ा और वह केवल तीन वर्षों तक ही शासन कर सकी। यद्यपि उसके शासन की अवधि बहुत कम थी, तथापि उसके कई महत्त्वपूर्ण पहलू थे। रज़िया के शासन के साथ ही सम्राट और तुर्की सरदारों, जिन्हें चहलग़ानी (चालीस) कहा जाता है, के बीच संघर्ष प्रारम्भ हो गया।


कब्र पर विवाद :


        दिल्ली के तख्त पर राज करने वाली एकमात्र महिला शासक रजिया सुल्तान व उसके प्रेमी याकूत की कब्र का दावा तीन अलग अलग जगह पर किया जाता है। रजिया की मजार को लेकर इतिहासकार एक मत नहीं है। रजिया सुल्ताना की मजार पर दिल्ली, कैथल एवं टोंक अपना अपना दावा जताते आए हैं। लेकिन वास्तविक मजार पर अभी फैसला नहीं हो पाया है। वैसे रजिया की मजार के दावों में अब तक ये तीन दावे ही सबसे ज्यादा मजबूत हैं। इन सभी स्थानों पर स्थित मजारों पर अरबी फारसी में रजिया सुल्तान लिखे होने के संकेत तो मिले हैं लेकिन ठोस प्रमाण नहीं मिल सके हैं। राजस्थान के टोंक में रजिया सुल्तान और उसके इथियोपियाई दास याकूत की मजार के कुछ ठोस प्रमाण मिले हैं।

यहां पुराने कबिस्तान के पास एक विशाल मजार मिली है जिसपर फारसी में 'सल्तने हिंद रजियाह' उकेरा गया है। पास ही में एक छोटी मजार भी है जो याकूत की मजार हो सकती है। अपनी भव्यता और विशालता के आकार पर इसे सुल्ताना की मजार करार दिया गया है। स्थानीय इतिहासकार का कहना है कि बहराम से जंग और रजिया की मौत के बीच एक माह का फासला था। इतिहासकार इस एक माह को चूक वश उल्लेखित नहीं कर पाए और जंग के तुरंत बाद उसकी मौत मान ली गई। जबकि ऐसा नहीं था। जंग में हार को सामने देख याकूत रजिया को लेकर राजपूताना की तरफ निकल गया। वह रजिया की जान बचाना चाहता था लेकिन आखिरकार उसे टोंक में घेर लिया गया और यहीं उसकी मौत हो गई।


भारतीय मुसलमानों द्वारा बनाई गयी ये इमारतें अमर हैं

हिन्दुस्तान: हमेशा से विशाल और अनैक धर्मो की एकता के लिए विश्व में प्रसिद्ध है| आज भी यहाँ कई ऐसी इमारते और स्मारक मौजूद है जो की भारत के गौरवशाली इतिहास की कहानियों को बयां करती है| भारत हमेशा से ही अपनी ऐतिहासिक इमारतों को लेकर विश्व में मशहूर है जिसकी वजह से आये दिन हज़ारों विदेशी यात्री और पर्यटक भारत घूमने आते हैं| यह इमारतें कोई और नहीं बल्कि मुस्लिम राजाओं द्वारा बनवाई गयी थी जिनको आज तक ना तो कोई नक़ल कर सका है और शायद आगे भी नहीं हो पायेगी| हम बात कर रहे हैं ऐसी ही कुछ इमारतों की जिन्हें दुनियां के कई देशो में दोबारा बनाने की कोशिश तो की गई लेकिन वह सफल नहीं हो पाये।


भारत की 10 सबसे मशहूर इमारतें और स्मारक जिनको मुसलमानों द्वारा बनवाया गया-



ताज महल: यह दुनिया की वो इमारत है जिसको दुनिया के साथ अजूबों में शामिल किया है| पूरी दुनियां इसको मोहब्बत की निशानी के नाम से जानती है क्यूंकि इसको मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज़ की याद में बन बाया था| बता दें कि ताजमहल के अन्दर बादशाह शाहजहाँ और मुमताज़ का मकबरा है जो ताजमहल का मुख्य आकषण है|


 



लाल किला: लाल किला प्रसिद्ध किले 'ए' मोअल्ला का नया नाम है जो शाहजानाबाद का केंद्र बिंदु होने के साथ उस समय की राजधानी भी था| लाल किले को 17 वीं सदी के दौरान स्थापित किया गया था| बता दें कि इस किले का निर्माण उस्ताद अहमद द्वारा 1639 में शुरू हुआ जो 1648 तक जारी रहा|यह किला दुनियां के विशाल महलो में से एक है जो 2.41 किलोमीटर में फैला हुआ है| वहीँ इस किले में दो मुख्य द्वार है जिन को लाहौर गेट और दिल्ली गेट कहा जाता है जिसे उस्ताद अहमद के शाही परिवार के लिए बनवाया गया था



क़ुतुब मीनार: दिल्ली के क़ुतुब परिसर में मौजूद यह सबसे प्रसिद्ध संरचना है| इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में यह देश की सबसे ऊंची मीनार है| जानकारी के लिए बता दें कि इस की ऊंचाई 72.5 मीटर है| इसे 1193 से 1368 के बीच में क़ुतुब-अल-दीन ऐबक ने एक विजय स्तंभ के रूप में बन बया था जो आज भी भारत की एक देखने वाली संरचना है।


 



चार मीनार : यह इमारत हैदराबाद की खास पहचान मानी जाती है जिसको मोहम्मद क़ुतुब शाही द्वारा 1591 में बनवाया था| जिस के नाम से साफ जाहिर होता है की इस इमारत में चार टावर है| यह भब्य ईमारत प्राचीन काल की वास्तुशिल्प का बेहतरीन नमूना माना जाता है| आपको बता दें कि इस टावर में चार चमक-धमक वाली मीनारे है जो चार मेहराब से जुडी हुई है जो मीनार को सहारा देती है| बता दें कि जब क़ुतुब शाही ने गोलकुंडा के स्थान को अपनी नई राजधानी बनाया था यह उस वक़्त बनवाई गयी थी और यह वाकई में आज भी काबिले तारीफ है।


 



बड़ा इमाम बाड़ा : लखनऊ मे गोमती नदी के किनारे पर बना यह बड़ा इमाम बाड़ा नवाब आसफुद्दोला द्वारा बनवाया गया था| बता दें कि इस इमारत को बनाने मे कोई धातु या लोहे का इस्तेमाल नहीं हुआ और न ही किसी खम्बे का इस्तेमाल किया गया लेकिन इसके बावजूद भी यह इमारत 50 मीटर लंबा और 16 मीटर चौड़ा हॉल है इसे सिर्फ ईटो से बनाकर निर्माण किया गया था| आपको बता दें कि इसकी उचाई 15 मीटर है और लगभग 20,000 टन बजनी छत बिना किसी बीम के सहारे मजबूती से टिकी हुई है|बता दें कि इसको देखकर दुनिया के बड़े बड़े इंजीनियर भी सोचते रह जाते है आखिर ये कैसे संभव है| इस इमारत को खाद्य पद्धार्तो से मिलकर बनाया गया है और इसकी दीवारे उडद की दाल चुने आदि का मिश्रण से तैयार किया गया है|



जामा मस्जिद : यह दुनिया की सबसे प्रसिद्ध और विशाल मस्जिदों में से एक है| यह दिल्ली में स्थित है जिसमे एक बार में 25,000 से ज्यादा लोग समा सकते हैं| इसको मुग़ल शासक शाह जहाँ द्वारा 1644 में बनवाया गया था जिसने ताज महल और लाल किला जैसी प्रसिद्ध इमारतों का निर्माण किया था| इस मस्जिद में तीन मुख्य द्वार, चार टावर और दो 40 मीटर विशाल मीनारें मौजूद हैं| जिसको लाल पत्थर और सफ़ेद संग्गेमर्मर से बनवाया गया था|


 



हुमायूँ का मकबरा : यह दुनिया भर में मुग़ल शासक हुमायूँ की आखरी मंज़िल के नाम से भी जानी जाती है क्यूंकि इसके अंदर हुमायूं का मकबरा मौजूद है| यह दिल्ली में स्थित है और मुग़ल शासन काल द्वारा बनाई गयी इमारतों में से एक है| इसे मुग़ल शासकों द्वारा बनवाई गयी पहेली इमारत के लिए भी मशहूर है जिससे प्रेरित हो कर शाह जहाँ ने ताज महल बनवाया था|


 



ताज-उल-मसाजिद : यह एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद मानी जाती है जो मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित है| इस मस्जिद का काम मुग़ल शासक भहदुर शाह ज़फर ने अपनी बेगम के नाम पर 1844–1860 में शुरू किया था जिसको बाद में उनकी बेटी सुलतान जहाँ बेगम ने पूरा किया था| बता दें कि यह विशाल मस्जिद का निर्माण पैसों की कमी की वजह से रुक गया था जिसे बाद में बहादुर शाह ज़फर की बेटी ने पूरा करवाया था|


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