भारत बहुसंख्यकवाद की ओर बढ़ रहा है, जो संविधान के प्रावधानों से सहमत नहीं।

अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद पर नौ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर क़ानून और संविधान के अध्येताओं की अलग-अलग राय आ रही है.


कोलकाता से प्रकाशित होने वाला अंग्रेज़ी दैनिक टेलिग्राफ़ से सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कलीसवरम राज ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर कहा कि भारत बहुसंख्यकवाद की ओर बढ़ रहा है, जो संविधान के प्रावधानों से सहमत नहीं है.


उन्होंने कहा, ''भारत घोर दक्षिणपंथी व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है. यह फ़ैसला संविधान के सिद्धांतों के लिए झटका है. यह क़ानून के राज और सेक्युलर व्यवस्था से मेल नहीं खाता है. यह शीर्ष अदालत का फ़ैसला है और सभी को स्वीकार करना चाहिए और किसी को भी शांति भंग करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. लेकिन कोर्ट में इस संवेदनशील मसले को जैसे देखा गया उस पर लंबे समय तक बात होती रहेगी.''


कलीसवरम राज सुप्रीम कोर्ट में कई अहम केसों के लिए जाने जाते हैं. इनमें सबसे अहम है शादी से बाहर संबंध बनाने को अपराध के दायरे से बाहर कराना.


राज ने कहा, ''सबसे विरोधाभासी यह है कि कोर्ट ने बाबरी मस्जिद तोड़ने की कार्रवाई को अवैध और ग़ैरक़ानूनी माना है और फिर उसी को सम्मानित करने की कोशिश की गई. पाँच जजों बेंच ने सर्वसम्मति से बाबरी विध्वंस को अवैध माना और फिर वहां मंदिर बनाने के पक्ष में फ़ैसला भी दिया. किसी भी स्थापित लोकतंत्र में यह बुनियादी चीज़ होती है कि भीड़ की हिंसा और किसी भी तरह के उपद्रव को फ़ायदा उठाने की अनुमति नहीं मिले. सबसे बड़ा नुक़सान क़ानून के राज का है. यह फ़ैसला संविधान के मानकों के हिसाब से विरोधाभासी


राज ने कहा, ''लोग पूछेंगे कि कैसे एक फ़ैसला क़ानून तोड़ने वालों के पक्ष में चला गया और पीड़ितों के ख़िलाफ़. कोर्ट ने कहा कि बाबरी विध्वंस अवैध था. इसका समाधान यह निकाला गया कि जहां मस्जिद थी वहां मंदिर बना दो. आने वाले वक़्त में इस विरोधाभास की चर्चा होगी.''


राज ने कहा कि इस फ़ैसले की चर्चा थमेगी नहीं. उन्होंने कहा, ''राजनीति हलकों में इस फ़ैसले की चर्चा ख़ूब होगी. वर्तमान संदर्भ में इस फ़ैसले को पढ़ें तो साफ़ पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट स्वतंत्रता नहीं बचा पाई. यह लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है. सुप्रीम कोर्ट बनने के बाद से दुनिया का सबसे ताक़तवर कोर्ट रहा है. सुप्रीम कोर्ट में राजनीतिक और नीतिगत मसलों की भी न्यायिक समीक्षा होती रही है.''


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