क्या नफीस की दुआ क़ुबूल हुई है? यूरोपियन युनियन देशों के प्रतिनिधियों के कश्मीर दौरे पर मैं उन कुछ पत्रकारों में से एक था जिन्हें वहाँ जाने और कवरेज की अनुमति मिली थी। तब मुझे मेरा एक सहपाठी दोस्त बिलाल अहमद डार जो मास कम्युनिकेशन पी.जी.के समय का साथी है, उससे मिलने उसके घर जाने की केवल पाँच मिनट के लिये अनुमति मिल गई थी। बिलाल के घर से वापसी के वक़्त गली के नुक्कड़ पर एक घर की खिड़की में से एक महिला की आवाज़ आई "अरविंद भाई आप बिलाल के दोस्त हो न, दिल्ली वाले। बिलाल आपकी बहुत तारीफ़ करता है, कहता है, अरविंद बहुत समझदार इंसान है, इंसानों का दर्द समझता है।" मैं 'नफीसा उमर' हूँ, बिलाल की फूफी की लड़की हूं। वक़्त की कमी को समझते हुए उसने जल्दी-जल्दी मुझसे जो बातें कहीं थीं उसकी बातें सुनकर मैं कई दिन सो न सका था और वो बातें आज आपको बताना ज़रूरी समझता हूँ जो नफीसा ने कहा- "किसी जगह लगातार सात महीने से कर्फ्यू हो, घर से निकलना तो दूर झाँकना भी मुश्किल हो, चप्पे-चप्पे पर आठ-नौ लाख आर्मी तैनात हो, इंटरनेट बंद हो, मोबाइल बंद हो, लैंड लाईन फोन बंद ...