बच्चों को मजदूर नहीं इंजीनियर बनाना है


    मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का जीवन यापन करने वाले परिवार वालों को बच्चों की पढ़ाई एक अतिरिक्त खर्च लगता है। पैसे की कमी और उस पर अतिरिक्त खर्च कई परिवार नहीं कर पाते हैं। श्रमिक परिवार के बच्चे ज्यादातर या तो स्कूल जाते नहीं हैं या जाते हैं तो कभी-कभी। लेकिन बच्चे पढ़ेंगे नहीं तो बढ़ेंगे कैसे। बच्चों को मजदूर नहीं इंजीनियर बनाना है। 
    कलेक्टर श्री अनुराग चौधरी शुक्रवार को शहर भ्रमण पर निकले तो कैलाश विहार में कई बच्चे इधर-उधर घूमते मिले। उन्होंने बच्चों को एकत्र कर जब उनसे पूछा कि स्कूल जाते हो तो कोई बोला हाँ तो कोई बोला ना। बच्चो के अभिभावकों से भी चर्चा की तो उनका कहना था कि हाओ साहब नाम तो लिखवाओ है पर जात नाहीं। कलेक्टर ने पूछा क्यों। 



   कलेक्टर श्री अनुराग चौधरी ने भ्रमण में उपस्थित सीईओ जिला पंचायत और जिला शिक्षा अधिकारी से कहा कि शहर में कई ऐसे बच्चे मिलते हैं जो स्कूल नहीं जाते हैं। यह हमारे सिस्टम की कमी है। सभी बच्चों को अभी एकत्र कर स्कूल ले जाएं और इनका एडमिशन कराएं। इसके साथ ही सभी बच्चों को स्कूल की ड्रेस और कॉपी-किताब भी दी जाए। 
    कलेक्टर के निर्देश पर सीईओ जिला पंचायत श्री शिवम वर्मा ने अपने साथ 11 बच्चों को लेकर शासकीय स्कूल ठाठीपुर पहुँचे और बच्चों का स्कूल में प्रवेश कराया। सभी बच्चों को शिक्षा विभाग की ओर से स्कूल की ड्रेस और कॉपी-किताबें भी उपलब्ध कराईं। अब बस्ती के बच्चे मजदूर नहीं इंजीनियर बनने की राह पर चल निकले हैं। 
    कलेक्टर श्री अनुराग चौधरी ने जिला शिक्षा अधिकारी को यह भी निर्देशित किया है कि वे पूरे शहर की बस्तियों मे भी शिक्षा विभाग के माध्यम से यह दिखवाएं कि ऐसे कितने बच्चे हैं जो स्कूल नहीं जाते हैं उन सबको स्कूल में भेजने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। कलेक्टर ने बच्चों के अभिभावकों से भी कहा कि बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार हर संभव सहयोग कर रही है। पैसे की कमी के कारण कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा। हम सबको अपने बच्चों को शिक्षित कर एक बेहतर इंसान बनाना है। इसलिए हर अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल अवश्य भेजें। 
   जिन बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाया उनमें कु. चांदनी, कु. राधिका, कु. दीक्षा, कु. जेश्मीन, कु. रानी, कु. नंदनी, कु. सीता, कु. वंदना, कु. शिवानी, कृष्णा व दीपक शामिल हैं।


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