हां मैं बाबर हूं शहंशाह ए हिंद


491 साल 7 महीने 12 दिन के बाद आज अदालत ने बाबर को बा इज़्ज़त बरी किया........


मैं बाबर हूँ ... हाँ वही "शहंशाह ज़हीर उद्दीन मुहम्मद बाबर" जिसने 21 अप्रैल 1526 ई० को पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी को हराया था और हिन्दुस्तान में मुग़लिया सलतनत की नीव रखी थी.


1530 ईo में 26 दिसम्बर का दिन था. आगरा में मौत ने मेरे ऊपर हमला किया. मैं ज़िन्दगी की जंग हार गया. मुझे काबुल में दफन किया गया और यह जगह बाग़-ए-बाबर के नाम से मशहूर हुई.


मैं कब्र में सुकून से सो रहा था तभी अचानक एक दस्तक ने मेरी आँख खोल दी. हिन्द से आये एक सफीर ने बताया कि मेरे ऊपर इल्ज़ाम है कि मैनें अयोध्या में राम मन्दिर तोड़ा है. मैं बेचैेन हो गया, मुझे याद ही नहीं कि मैने किस मन्दिर को तोड़ा था. मैने अपने सिरहाने से तूज़ुक-ए-बाबरी उठाई, यह मेरी किताब थी. इसको पढ़ना शुरू किया :::::-----


"मेरा अवध में एक गवर्नर था शैख़ बायज़िद ... उसनेे मुझसे बग़ावत की थी ... मैं 28 मार्च 1528 ई० को बग़ावत ख़त्म करने के लिए अवध पहुँचा था ... अयोध्या शहर से 8 मील दूर मैनें कैम्प किया और मेरे फौजी दस्तों ने सरयू के किनारे से बायज़िद को खदेड़ दिया"... ना मैं और ना ही मेरे सिपाही, अयोध्या शहर में दाखिल हुए, फिर मेरे ऊपर मन्दिर तोड़ने का इल्ज़ाम किसने लगाया.


मैं सोचता रहा कि किस से बात करूँ. मुझे किसी ने तुलसीदास का नाम बताया कि वो श्री राम का भक्त था, उससे बात करें वो सच बोलेगा. मैनें उसकी रूह से मुलाकात की. पूछा, तुम कब पैदा हुए थे ??? उसने जवाब दिया, हुज़ूर मुझे याद नहीं लेकिन हिन्द के इतिहासकार दो तारीख़ें बताते हैं, 1511 और 1532. यानी अगर 1511 मानी जाए तो मेरी मौत के वक्त तुम 19 साल के थे और अगर 1532 मानी जाए तो तुम मेरी मौत के 2 साल बाद पैदा हुए थे.


मैनें तुलसीदास से कहा कि मेरे ऊपर राम मन्दिर तोड़ने का इल्ज़ाम है, तुम्हें मालूम है ??? उसने कहा, जी मुझे मालूम है. क्या यह इल्ज़ाम सही है ??? उसने कहा, नहीं ग़लत है. मैं तो अयोध्या आता जाता रहता था, वहाँ ऐसी कोई बात नहीं सुनी थी. मैनें आपके पोते जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर के ज़माने में रामचरित्रमानस लिखी थी. अगर आपने मन्दिर तोड़ा होता तो मैं इसका ज़िक्र ज़रूर करता.


मुझे तुलसीदास की बात से तसल्ली हुई ... ख़ैर  !!! ज़माने बदलते रहे ... हुकूमतें बदलती रहीं ... हिन्द के नक़्शे बदलते रहे ... मैं भी क़ब्र में करवटें बदलता रहा ... और ख़ुदा से दुआ करता रहा कि इस इल्ज़ाम से बरी हो जाऊँ.


आज 9 नवम्बर 2019 है. मुझे 491 साल 7 महीने और 12 दिन के बाद इंसाफ मिला. लोग तो 5/10 साल में टूट जाते हैं ... लेकिन मैं तो शहंशाह हूँ, शहंशाह-ए-हिन्द ... मैं कैसे टूट सकता हूँ ... शहंशाह मायूस नहीं होते हैं. तुम भी मायूस ना हो, सब्र से काम लो. मुझे इंसाफ मिला, तुम्हें भी मिलेगा. मायूसी कुफ्र है क्या तुम्हें याद नहीं ...???  


   ना हो ना-उम्मीद, ना-उम्मीदी ज़वाल-ए इल्म-ओ-इरफाँ है,
   उम्मीद-ए-मर्द-ए-मोमिन  होते   हैं  ख़ुदा  के  राज़दानों  में.


आज की रात सुकून से सोऊँगा ... अब बस आखिरी अदालत में हाज़िरी होगी ... वहाँ ना अक्सरियत की आस्था होगी ना अक़्लियत के आँसू ... वहाँ सिर्फ इंसाफ होगा ... मैं भी देखूँगा, तुम भी देखना.


ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर
      शहंशाह-ए-हिन्द


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