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जीना इसी का नाम है

इसे कहेंगे ज़िन्दगी का यू-टर्न, जिंदगी रानू मंडल को प्लेटफार्म से उठाकर बालीवुड तक पहुंचाने वाले हिमेश रेशमिया की कहानी तो सबने पढ़ ली मगर शहर में तैनात यातायात उपनिरीक्षक श्रीप्रकाश शुक्ल ने जो किया, वह भी मासूम मनोज की जिंदगी बदल देने वाला कदम साबित होगा। महज 10 साल के चाय बेंच रहे इस लड़के की बाल सुलभ चंचलता, उसकी वाक्पटुता ने वाहन चेकिंग कर रहे शुक्ल को ऐसा माेहा कि उन्होंने उसे दुकान से उठाकर स्कूल पहुंचा दिया।


यह सुनकर मनोज की मां पहुंच आई शहर और घर का खर्च न चलने का हवाला दे जब उसे स्कूल की राह से रोकी तो टीएसआइ ने उसकी भी जिम्मेदारी संभालने की बात कही। ताकि बच्चे की जिंदगी संवर सके। जिसने भी एक खाकी वर्दी वाले की सहृदयता सुनी वह वाह-वाह कर उठा। यहां तक कि उनकी मंशा के विपरीत स्कूल प्रबंधक ने बालक की शिक्षा की जिम्मेदारी खुद उठा ली और उसे स्कूल तक पहुंचाने के लिए श्री शुक्ल को धन्यवाद दिया। दूसरी ओर मनोज ने जब इच्छा होते हुए भी न पढ़ पाने की अपनी बेबसी भरी कहानी बयां की तो सभी की आंखों से आंसू छलक उठे।


सोमवार की शाम सलाहाबाद मोड़ पर वाहन चेक करते समय प्यास लगने पर टीएसआइ श्रीप्रकाश शुक्ल ने एक होमगार्ड से पानी व चाय के लिए बोलने को कहा। कुछ ही देर बाद एक 10 वर्षीय बालक उनके सामने पकौड़ी लेकर हाजिर था। आते ही बोलना शुरू किया, अंकल..., पकौड़ी खा लीजिए तब तक, बहुत टेस्टी है। मैं अभी चाय लेकर आता हूं, बिना चीनी की। क्योंकि मुझे पता है आपकी उम्र के लोग बिना चीनी की ही चाय पीते हैं। बिना रुके वह बाेले जा रहा था और टीएसआइ मंत्रमुग्ध सा उसका भोला चेहरा देखते जा रहे थे। वह चुप हुअा तो पूछे किस क्लास में पढ़ते हो। अब बच्चे का चेहरा गिर गया। 'कहां पढ़ता हूं अंकल। बस कक्षा दो तक पढ़ पाया। पापा मम्मी को छोड़कर आजमगढ़ चले गए और दूसरी शादी कर लिए। घरवाले मां को और हमको घर से निकाल दिए। अब टीन के छप्पर में रहता हूं। मां शादी-व्याह में काम कर लेती है तो चार पैसे मिल जाते हैं। यहां मुझे ₹1500 रुपये मिलते हैं तो घर का खर्च चलता है। बताइए, कैसे पढ़ूंगा "मैं"...।


इतना सुनकर टीएसआइ भावुक हो गए बोले, बेटा अब तुम पढ़ोगे। कल से स्कूल जाआेगे और पूरा खर्च मैं दूंगा। बालक खुश हो गया। शाम को घर जाकर मां को बताया तो मां आग-बबूला। सुबह ही पहुंच गई टीएसआइ की खैर लेने। बोली, यह पढ़ेगा तो घर का खर्च कैसे चलेगा। यह सुन टीएसआइ ने वह भी जिम्मेदारी ओढ़ ली। यह भी कहा, ₹25000 रुपये भी दूंगा, घर ठीक करवाने को। बालक को लेकर डान वास्को स्कूल पहुंचे। सारा वाकया बताया। यह भी कहा अगर ट्रांसफर हो गया तो आपके खाते में रुपया भेजता रहूंगा। यह सुन व्यवस्थापक देवेंद्र बहादुर राय ने कहा, सर आप इसे यहां तक लाए, अब आपकी जिम्मेदारी खत्म। अब इंटर तक इसकी पढ़ाई मेरे जिम्मे। उसका एडमीशन हो गया। इसके बाद टीएसआइ ने उसे दुकान पर ले जाकर ड्रेस, किताब-कापी, स्कूल बैग दिलवाया। यह सब देख मनोज भावुक हो गया और रोने लगा। उसकी कहानी जान स्कूल के लोग भी भावुक हो उठे।


विशेष आग्रह : अपने आस पास बहुत से ऐसे लोगों को देखा होगा, बहुत से ऐसे लोगों के बारें में सुना या पढ़ा होगा जो निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करते हैं, गरीबों की सेवा करते हैं, धर्म की दीवार को तोड़कर सभी धर्मों की एकता की बात करते हैं, गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं, अनाथ बच्चों की पढ़ाई या खाने पीने का खर्च उठाते हैं, जानवरों की सुरक्षा या देखभाल करते हैं, बहुत ही गरीबी या मुश्किल स्थिति से गुजरते हुए भी हार नहीं मान रहे हैं, कोई सुविधा न होने के बावजूद भी पढना नहीं छोड़ रहें हैं, सामाजिक सन्देश देने के लिए कोई नया काम कर रहे हैं, इस पहल में उन सभी लोगों को सलाम।


और इस शुरुआत का मकसद सिर्फ लोगों को दूसरों की मदद करने के लिये, मुश्किलों और निराशाओं से बाहर निकलने के लिए, अपनी और दूसरों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करना हैं। और मुझे विश्वास हैं कि मेरा ये प्रयास अपने मकसद में जरुर सफल होगा।


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