अकेले इंसान की जान

लंदन में  ये आदमी ख़ुदकुशी करने की ग़र्ज़ से छलांग लगाने जा रहा था। एक अजनबी आदमी ने उसे देखा और उसके पैर पकड़ लिए और उसे मनाता रहा के ऐसा ना करें। कुछ देर बाद कई और अजनबी लोग जमा होगये। किसी ने उसकी पतलून के बेल्ट को पकड़ा और किसी ने उसे रस्सी से बाँध दिया ताकि वो कूद ना सके।


एक तरफ ऐसे समाज की तस्वीर है जहां एक भीड़ एक अकेले इंसान को बचा रही है। दूसरी तरफ एक ऐसा समाज बन चूका है जहाँ एक भीड़ एक अकेले इंसान की जान ले लेती है। इस भीड़ केलिए मारने केलिए धर्म, ज़ात या कुछ भी कारण बनता जा रहा है।


जो समाज दुसरे इंसानों की क़द्र करता है वो फलता फूलता है और जो समाज दुसरे इंसानों की क़द्र नहीं करता वो तबाह ओ बर्बाद हो जाता है


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